अंबिकापुर – छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर शहर के महामाया पहाड़ श्रीगढ़ क्षेत्र में वन विभाग द्वारा शुरू की गई अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई ने 117 कब्जाधारियों की जिंदगी में एक नई चुनौती ला दी है। वन मंत्री केदार कश्यप के बयान के बाद यह कार्रवाई शुरू हुई, जिससे क्षेत्र में तनाव बढ़ गया है। यह मामला केवल वन भूमि पर अतिक्रमण का नहीं, बल्कि उन परिवारों की जिंदगी का भी है जो वर्षों से यहां रह रहे हैं। इन परिवारों के लिए घर बनाने का सपना था, जो अब टूटता दिखाई दे रहा है।
घर से बाहर रात बिता रहे बच्चे और महिलाएं
कब्जाधारी परिवारों की महिलाएं और बच्चे अतिक्रमण हटाने की इस कार्रवाई में तड़पते हुए कहते हैं, ‘‘हमने जहां बच्चों को पाला, अब उन्हीं बच्चों के साथ खुले मैदान में रातें बिता रहे हैं।’’ एक महिला ने आंसू भरी आंखों से कहा, ‘‘ठंड इतनी बढ़ गई है कि घर से बाहर निकलने पर शरीर कांपने लगता है, और हमें प्रशासन ने बिना किसी मदद के खुले में छोड़ दिया है।’’ एक छोटे से बच्चे ने अपनी मां से कहा, ‘‘मां, भगवान से दुआ करो, हमें हमारे घर वापस मिल जाएं, नहीं तो हम कहां जाएंगे?’’ इस मासूम की आवाज़ में दर्द और भय साफ दिखाई दे रहा था।

कब्जाधारी का दर्द
कब्जाधारी अपने दर्द को साझा करते हुए कहते हैं कि ‘‘हमने यहां घर बनाने का सपना देखा था, लेकिन अब हमें रातोंरात सड़कों पर लाकर खड़ा कर दिया गया है। यदि हम गलत थे, तो पहले क्यों नहीं कुछ कहा गया? जब घर बना रहे थे, तब नगर निगम से सड़क, पानी, बिजली जैसी सुविधाएं मिलीं, तो अब हमें दोषी क्यों ठहराया जा रहा है?’’ इन परिवारों का यह भी कहना है कि प्रशासन ने उन्हें नोटिस तो दिया, लेकिन किसी प्रकार की सहायता नहीं की गई। ठंड के मौसम में इन्हें किसी भी तरह की मदद की उम्मीद थी, लेकिन वे अकेले महसूस कर रहे हैं।
कानूनी कदम या मानवाधिकार का उल्लंघन?
लेकिन क्या यह मामला केवल कानूनी कार्रवाई का है, या इसमें उन परिवारों की सामाजिक और मानवाधिकारों की बात भी होनी चाहिए जो वर्षों से यहां रह रहे हैं? इस पूरी कार्रवाई के दौरान उनके बच्चे और महिलाएं खुले आसमान के नीचे रातें बिता रहे हैं, इस पर क्या प्रशासन को कुछ कदम नहीं उठाना चाहिए था?

मानवता का सवाल
यहां सवाल यह उठता है कि क्या कोई रास्ता है जहां पर्यावरण के संरक्षण के साथ-साथ इन परिवारों को एक सम्मानजनक जीवन जीने का मौका भी दिया जाए? क्या इन परिवारों को विस्थापित करने से पहले उन्हें पुनर्वास के विकल्प नहीं मिल सकते थे?
समाज की भूमिका
यहां सिर्फ वन विभाग और प्रशासन का नहीं, बल्कि समाज और स्थानीय जनप्रतिनिधियों का भी दायित्व बनता है कि वे इन परिवारों के अधिकारों का सम्मान करें और इस स्थिति का संवेदनशील समाधान ढूंढें। एक ओर जहां वन विभाग और प्रशासन द्वारा अतिक्रमण हटाने की यह कार्रवाई पर्यावरण की रक्षा के लिए जरूरी कदम हो सकती है, वहीं दूसरी ओर यह परिवारों के लिए बेहद कठिन समय लेकर आई है।
जंगलों के संरक्षण के साथ-साथ मानवाधिकारों का सम्मान
सरगुजा जिले में अवैध अतिक्रमण के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की जा रही है, जिसमें पुलिस बल की तैनाती भी की गई है, लेकिन इस प्रक्रिया में यह भी जरूरी है कि हम उन परिवारों के अधिकारों का सम्मान करें जो इन जंगलों में अपने जीवन की जड़ें जमा चुके हैं। क्या हमें जंगलों और पर्यावरण की रक्षा के साथ-साथ उन लोगों की भलाई के लिए भी कुछ कदम नहीं उठाने चाहिए, जिनका जीवन इन जंगलों के साथ जुड़ा हुआ है?
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