भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 17 दिसंबर 2024 को संसद में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ (एक देश, एक चुनाव) प्रस्ताव पेश किया। इस प्रस्ताव का उद्देश्य भारत में लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों को एक साथ आयोजित करने का है। इस प्रस्ताव के तहत, भारत के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एक साथ चुनाव होंगे, जिससे चुनावी प्रक्रिया को सरल और कम खर्चीला बनाने की कोशिश की जाएगी। प्रधानमंत्री ने इसे एक ऐतिहासिक कदम बताया है, जो देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करेगा।
प्रस्ताव के मुख्य बिंदु
- समान चुनावी तिथियां: प्रस्ताव के मुताबिक, भारत के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एक साथ चुनाव आयोजित किए जाएंगे। इससे चुनावी प्रक्रिया में एकरूपता आएगी और चुनावों के बीच का समय कम होगा। इसका मतलब है कि लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों को एक साथ रखा जाएगा। इससे राजनीतिक दलों और सरकारों को चुनावी खर्च और संसाधनों का बेहतर उपयोग करने का मौका मिलेगा।
- चुनाव आयोग की भूमिका: चुनाव आयोग को इस प्रस्ताव के तहत चुनाव की तिथियों की घोषणा और चुनाव प्रक्रिया की निगरानी करने की जिम्मेदारी दी जाएगी। चुनाव आयोग को राज्य और केंद्रीय चुनावों को एक साथ आयोजित करने के लिए पूरी व्यवस्था करनी होगी। यह सुनिश्चित करने के लिए कि चुनाव निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से हों, आयोग को विशेष तैयारी करनी होगी।
- संविधान में संशोधन: इस प्रस्ताव को लागू करने के लिए संविधान में कुछ महत्वपूर्ण संशोधन किए जाएंगे। जिनमें चुनावों की तिथियों और चुनावी प्रक्रिया के बारे में विशेष प्रावधानों को शामिल किया जाएगा। संसद के दोनों सदनों में इस प्रस्ताव पर विचार और बहस के बाद इसे संविधान में शामिल किया जाएगा।
- चुनाव में पारदर्शिता और निष्पक्षता: इस प्रस्ताव का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता को बढ़ाना है। यदि एक साथ चुनाव होंगे तो सभी राजनीतिक दलों को समान अवसर मिलेगा और चुनावी प्रचार का समय भी सीमित होगा। इससे वोटरों को सही और ईमानदारी से मतदान करने का अवसर मिलेगा, क्योंकि चुनावी प्रचार पर खर्चीले और भ्रामक विज्ञापनों का दबाव कम होगा।
विशेषज्ञों की राय
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ से भारत की चुनावी प्रक्रिया में कई सकारात्मक बदलाव आ सकते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बदलाव यह होगा कि चुनावी खर्च में कमी आएगी। चुनाव आयोग के द्वारा एक ही बार में चुनाव आयोजित करने से प्रशासनिक खर्चों में कमी आएगी और सरकारी संसाधनों का बेहतर उपयोग होगा। इसके अलावा, राजनीतिक दलों को चुनावी प्रचार में अधिक समय और धन खर्च करने की बजाय, पूरे देश में समान रूप से प्रचार करने का अवसर मिलेगा।
हालांकि, कुछ विशेषज्ञ इस प्रस्ताव के खिलाफ भी हैं। उनका कहना है कि इससे राज्यों की स्वायत्तता प्रभावित हो सकती है। उनका यह भी मानना है कि हर राज्य की राजनीतिक स्थिति और मुद्दे अलग-अलग होते हैं, और उन्हें अपने समय और परिस्थिति के अनुसार चुनाव की आवश्यकता होती है। यदि सभी चुनाव एक साथ होंगे तो यह राज्य सरकारों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है, क्योंकि यह उनके स्थानीय मुद्दों को प्रभावित कर सकता है।
इसके अतिरिक्त, कुछ राजनीतिक दलों का यह भी कहना है कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का प्रस्ताव पार्टी विशेष लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से हो सकता है। उनका यह आरोप है कि यह कदम कुछ विशेष राजनीतिक दलों को ही फायदा पहुंचा सकता है, जो देशव्यापी तौर पर लोकप्रिय हैं।
आगे की प्रक्रिया
अब इस प्रस्ताव को संसद की स्थायी समिति के पास भेजा जाएगा, जहां इसकी विस्तृत समीक्षा की जाएगी। इस प्रस्ताव के लागू होने के बाद, यह सभी राजनीतिक दलों और राज्य सरकारों के बीच चर्चा का विषय बनेगा। इसके बाद, प्रस्ताव पर संसद में बहस होगी और फिर मतदान होगा। यदि संसद में इसे बहुमत से मंजूरी मिलती है, तो इसे संविधान में शामिल किया जाएगा और भारत में एक साथ चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी।
सकारात्मक पहलू
- चुनावी खर्च में कमी: ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ से चुनावी खर्च में भारी कमी आ सकती है। चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों को प्रचार पर खर्च करने के लिए एक निश्चित बजट मिलेगा, जिससे वे खर्चों पर नियंत्रण रख सकेंगे।
- व्यवस्थापिका कार्यों की निरंतरता: जब चुनावों के दौरान कोई सरकार नए कार्यों की शुरुआत करती है, तो इन कार्यों में अक्सर रुकावटें आ जाती हैं। यदि एक साथ चुनाव होंगे तो सरकार की कार्यप्रणाली निरंतर बनी रहेगी और प्रशासनिक कार्यों में कोई अवरोध नहीं आएगा।
- नागरिकों के लिए सुविधा: चुनावों में बार-बार मतदान की प्रक्रिया से नागरिकों को असुविधा होती है। यदि सभी चुनाव एक साथ होते हैं, तो नागरिकों को बार-बार मतदान करने की आवश्यकता नहीं होगी, और चुनावी प्रक्रिया अधिक सहज होगी।
‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ प्रस्ताव भारत की चुनावी प्रक्रिया में एक ऐतिहासिक बदलाव ला सकता है। इससे चुनावों के संचालन में अधिक सुव्यवस्था और कम खर्च हो सकता है। हालांकि, इसे लागू करने से पहले सभी राजनीतिक दलों और राज्यों की सहमति आवश्यक होगी। इसके अलावा, यह देखा जाएगा कि इसके संभावित दुष्प्रभाव क्या हो सकते हैं और कैसे इसे सभी के हित में लागू किया जा सकता है।
इस प्रस्ताव पर पूरी तरह से विचार करने के बाद ही यह तय होगा कि यह कदम भारत की राजनीति और चुनावी प्रक्रिया के लिए कितनी सफलता लेकर आएगा।