लखनपुर थाना क्षेत्र के कुन्नी चौकी में शुक्रवार की सुबह एक ऐसी घटना सामने आई, जिसने हर किसी को झकझोर कर रख दिया। एक मां और उसकी 7 वर्षीय मासूम बेटी के फंदे से लटकते शव हाई स्कूल कुन्नी के पीछे पाए गए। मिना गुप्ता और उसकी बेटी आस्था गुप्ता की इस आत्मघाती कदम ने एक गहरे पारिवारिक विवाद और अधूरे सपनों की दर्दनाक कहानी को उजागर कर दिया।
पारिवारिक विवाद की जड़ में ‘घर का सपना’
मिना गुप्ता की शादी संजय गुप्ता से हुई थी, जो कुन्नी हाई स्कूल में शिक्षक हैं। शादी के कुछ सालों बाद से ही उनके बीच विवाद शुरू हो गया था। यह मामला इतना बढ़ा कि कुटुंब न्यायालय तक जा पहुंचा। इस विवाद के बीच मिना के मन में एक ही सपना था—एक ऐसा घर, जहां वह अपनी बेटी के साथ सुकून से रह सके।गुरुवार को मिना अपनी बेटी आस्था के साथ पति के स्कूल पहुंची और घर बनवाने की बात रखी। लेकिन, पति से मिले जवाब ने शायद मिना की उम्मीदों को पूरी तरह तोड़ दिया। अगले ही दिन मिना और उसकी बेटी की लाश पेड़ पर लटकी मिली।
एक मां का टूटता हौसला
मिना गुप्ता के पड़ोसियों और परिचितों के अनुसार, वह एक मजबूत और आत्मनिर्भर महिला थीं। लेकिन पारिवारिक विवाद ने उनके जीवन को इतना जटिल बना दिया कि वे अपने ही सपनों के नीचे दब गईं। उनकी 7 साल की बेटी आस्था भी इस विवाद का मूक गवाह बन गई।
समाज के लिए सवाल
यह घटना सिर्फ एक परिवार की नहीं है, बल्कि समाज के लिए एक गंभीर प्रश्न है। क्या घर का सपना इतना बड़ा बोझ बन सकता है कि किसी को आत्महत्या जैसा कदम उठाना पड़े? मिना के सपने को साकार करने की जिम्मेदारी किसकी थी—सिर्फ उनके पति की, या हमारे समाज की भी?
पुलिस की जांच और बयान
कुन्नी पुलिस ने शवों को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है। एएसपी सरगुजा अमोलक सिंह ढिल्लों ने बताया, “मामला पारिवारिक विवाद का लगता है। जांच के बाद ही स्पष्ट होगा कि मिना और उसकी बेटी ने ऐसा कदम क्यों उठाया।”
क्या यह घटना टाली जा सकती थी?
मिना गुप्ता की यह कहानी अधूरे सपनों और टूटते रिश्तों की कहानी है। अगर समय रहते उनके विवाद को सुलझाने का प्रयास होता, तो शायद यह घटना रोकी जा सकती थी। एक घर का सपना मिना के लिए सिर्फ चार दीवारों का नहीं था, बल्कि यह उसकी बेटी के भविष्य और उसकी खुद की पहचान से जुड़ा हुआ था।
मिना गुप्ता और उनकी बेटी की मौत सिर्फ एक खबर नहीं है; यह समाज के लिए एक चेतावनी है। हमें यह समझना होगा कि पारिवारिक विवादों का समाधान सिर्फ कानूनी प्रक्रिया से नहीं हो सकता। हमें रिश्तों और सपनों को समझने और उन्हें सहेजने की जरूरत है, ताकि मिना जैसी और कहानियां इस तरह दर्दनाक अंत तक न पहुंचे।