मौसमी अपडेटः- पृथ्वी के वायुमंडल में हवाएं न केवल मौसमी संतुलन बनाए रखने में मदद करती हैं, बल्कि ये जलवायु और पर्यावरणीय घटनाओं को भी प्रभावित करती हैं। “गर्जन चालीसा,” “प्रचंड पचासा,” और “चीखता साठा” जैसे नाम समुद्री यात्राओं के दौरान नाविकों द्वारा दक्षिणी गोलार्ध के 40° से 60° अक्षांशीय क्षेत्रों में पाई जाने वाली इन अनोखी हवाओं को दिए गए। ये नाम इन क्षेत्रों की मौसमी तीव्रता और प्राकृतिक शक्तियों को रोचक और सरल तरीके से समझाते हैं। आइए, इस लेख में इन हवाओं और उनके प्रभावों को विस्तार से समझते हैं।
स्थायी पवनें और उनकी भूमिका
पृथ्वी की वायुमंडलीय संरचना स्थायी पवन प्रणालियों पर आधारित है। इन पवनों का मुख्य स्रोत सूर्य की ऊर्जा और पृथ्वी का घूर्णन है।
- स्थायी पवनों के उदाहरण: पछुआ हवाएं (Westerlies) और व्यापारी हवाएं (Trade Winds)।
- स्थिति: 30°-35° अक्षांशीय क्षेत्र अपेक्षाकृत शांत रहते हैं। यहां वायुमंडलीय दबाव स्थिर रहता है।
- मौसमी घटनाएं: 30°-65° अक्षांशीय क्षेत्र में भारी वर्षा, तेज हवाएं और तूफानी चक्रवात जैसे प्राकृतिक घटनाएं सामान्य हैं।
स्थायी पछुआ हवाएं:
यह हवाएं पश्चिम से पूर्व की ओर चलती हैं और दोनों गोलार्धों में 30° से 60° के बीच पाई जाती हैं। हालांकि, इनके प्रवाह की दिशा उत्तरी गोलार्ध में दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व और दक्षिणी गोलार्ध में उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व होती है।
कोरियोलिस बल और हवाओं का विचलन
फेरल का सिद्धांत (Ferrel’s Law) यह बताता है कि पृथ्वी का घूर्णन वायुमंडलीय पवनों के रास्ते को मोड़ देता है।
- उत्तरी गोलार्ध: हवाएं अपने दाएं ओर झुकती हैं।
- दक्षिणी गोलार्ध: हवाएं अपने बाएं ओर झुकती हैं।
- मुख्य कारण: कोरियोलिस बल।
यह बल पृथ्वी के घूर्णन के कारण पैदा होता है और यह पवनों के मार्ग को प्रभावित करता है। यही कारण है कि पछुआ हवाएं सीधे नहीं चलतीं।
गोलार्धों की भौगोलिक स्थिति और प्रभाव
दक्षिणी और उत्तरी गोलार्ध में भौगोलिक अंतर के कारण मौसम और हवाओं के व्यवहार में भिन्नता होती है।
- उत्तरी गोलार्ध:
- भूमि का हिस्सा अधिक (68%)।
- वायुमंडलीय घर्षण अधिक होने के कारण हवाएं कमजोर हो जाती हैं।
- दक्षिणी गोलार्ध:
- भूमि कम (32%) और समुद्र ज्यादा।
- समुद्र के ऊपर हवाओं को कम अवरोध मिलता है, जिससे वे तीव्र गति और अधिक नमी के साथ चलती हैं।
दक्षिणी गोलार्ध में हवाओं की तीव्रता और नमी अधिक होती है, जिससे यह क्षेत्र समुद्री तूफानों और गर्जनशील मौसम के लिए प्रसिद्ध है।
गर्जन चालीसा, प्रचंड पचासा और चीखता साठा: क्या हैं ये?
1. गर्जन चालीसा (Roaring Forties):
40° अक्षांशीय क्षेत्र में हवाओं की तीव्रता सबसे अधिक होती है।
- नामकरण का कारण: इस क्षेत्र में तेज हवाएं समुद्र पर भारी गर्जना करती हैं।
- प्रमुख विशेषताएं:
- हवाएं प्रचंड वेग से चलती हैं।
- ये हवाएं समुद्र से नमी लेकर भारी वर्षा करती हैं।
- नाविकों को समुद्री यात्रा के दौरान इनसे खतरा रहता है।
- मौसमी प्रभाव:
- यह क्षेत्र जहाजरानी के लिए चुनौतीपूर्ण है।
- वायुमंडलीय दबाव के अंतर से हवाओं का वेग बढ़ता है।
2. प्रचंड पचासा (Furious Fifties):
50° अक्षांशीय क्षेत्र में हवाओं की तीव्रता थोड़ी कम हो जाती है, लेकिन ये अब भी शक्तिशाली होती हैं।
- मुख्य विशेषताएं:
- हवाओं का चक्रवाती स्वरूप।
- तूफानी बादलों के गुच्छों का निर्माण।
- प्रभाव:
- समुद्री क्षेत्रों में गर्जना और बारिश जारी रहती है।
- हवाओं की दिशा में स्पष्ट विचलन देखा जाता है।
3. चीखता साठा (Shrieking Sixties):
60° अक्षांशीय क्षेत्र में पहुंचने पर हवाओं की तीव्रता और कमजोर हो जाती है।
- विशेषताएं:
- यहां हवाएं अपनी ऊर्जा खोने लगती हैं।
- नाविकों ने इन हवाओं की “चीखती” आवाज के कारण इन्हें यह नाम दिया।
समुद्री व्यापार और इन घटनाओं का महत्व
समुद्री व्यापारियों ने इन क्षेत्रों की हवाओं का उपयोग जहाजों को गति देने के लिए किया।
- 40°-60° अक्षांशीय क्षेत्र:
- नौपरिवहन के लिए तेज हवाओं का सहारा।
- मौसमी व्यवधान के कारण खतरे का सामना।
- वर्तमान उपयोग:
- आधुनिक जहाज इन क्षेत्रों में नेविगेशन के लिए विशेष तकनीकों का उपयोग करते हैं।
इन घटनाओं का पर्यावरणीय महत्व
- जलवायु संतुलन: ये हवाएं पृथ्वी के विभिन्न हिस्सों में नमी और ऊर्जा के संतुलन में मदद करती हैं।
- समुद्री पारिस्थितिकी: ये घटनाएं समुद्र की सतह को ठंडा करने और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को सक्रिय बनाए रखने में सहायक हैं।
अम्बिकापुर के मौसम विभाग के वैज्ञानिक एएम भठ्ठ द्वारा सांझा की गई जानकारी।
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