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12 साल का बच्चा बन गया परिवार का कंधा, दिव्य कुमार जोशी की संघर्षमयी कहानी

रामानुजगंज, छत्तीसगढ़। जिस उम्र में बच्चे खेलकूद में व्यस्त होते हैं और पढ़ाई में ध्यान लगाते हैं, उस उम्र में दिव्य कुमार जोशी अपनी जिम्मेदारियों के साथ घर का पालन पोषण करने की चुनौती का सामना कर रहे हैं। महज 12 वर्ष की उम्र में वह न केवल अपनी पढ़ाई पूरी करते हैं, बल्कि अपने दो भाई-बहनों और मां का भी भरण पोषण करते हैं। दिव्य ने यह साबित कर दिया है कि उम्र सिर्फ एक संख्या होती है, जब संघर्ष और मेहनत की बात हो।

परिवार का सहारा बनते हुए रोज़ 800-1400 रुपये कमाए
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परिवार की जिम्मेदारी और दिव्य का संघर्ष

दिव्य कुमार जोशी की कहानी उन बच्चों की कहानियों से अलग है, जो अपनी उम्र में सिर्फ खेलने और पढ़ाई में लगे रहते हैं। दिव्य का जीवन संघर्ष से भरा हुआ है। उनके पिता हरिओम जोशी प्राइवेट स्कूल में शिक्षक थे, लेकिन 7-8 साल पहले उनका निधन हो गया। इस हादसे ने दिव्य और उनके परिवार के लिए मुश्किलें पैदा कर दीं। दिव्य की उम्र उस वक्त काफी कम थी, और वह अभी खेलकूद में व्यस्त होता, लेकिन पिता के निधन ने परिवार की पूरी जिम्मेदारी उसके कंधों पर डाल दी। उनकी मां ने कड़ी मेहनत से बच्चों का पालन पोषण किया, लेकिन यह स्थिति भी स्थायी नहीं रही। दिव्य ने अपनी पढ़ाई के साथ-साथ अपने परिवार की देखभाल की जिम्मेदारी भी उठाई।

10 साल की उम्र में मोमोज की दुकान

जब दिव्य 10 साल के थे, तो उन्होंने अपने चाचा के साथ मोमोज बेचने का काम शुरू किया। गांधी चौक के पास एक ठेले पर वह और उनके चाचा मिलकर मोमोज बेचने लगे। दिव्य ने यह काम पूरी जिम्मेदारी के साथ किया और लगातार मेहनत करते हुए खुद को इस काम में माहिर बना लिया। पिछले एक साल से वह अकेले ही ठेला लेकर मोमोज बेचने का काम करता है। इस कठिन काम में भी दिव्य ने कभी हार नहीं मानी, बल्कि इसे एक अवसर के रूप में देखा।

दिव्य की दिनचर्या: संघर्ष और मेहनत का संगम

दिव्य का दिन बहुत ही व्यस्त होता है। वह सुबह 6:30 बजे उठता है और सबसे पहले थोड़ी देर के लिए टहलने जाता है, ताकि ताजगी मिले। इसके बाद वह स्कूल की तैयारी करता है और फिर अपनी पढ़ाई में व्यस्त हो जाता है। दिव्य अभी पूर्व माध्यमिक शाला कोइरी टोला में कक्षा सातवीं का छात्र है। स्कूल के बाद वह 4 बजे घर लौटता है और फिर जल्दी से खाना खाता है। लगभग 4:30 बजे वह अपना ठेला लेकर गांधी चौक की ओर निकलता है, जहां वह शाम 8 बजे तक मोमोज बेचता है। दिव्य की मेहनत ने उसे न केवल आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाया है, बल्कि यह भी दिखाया है कि छोटे शहरों में भी बच्चे अपनी जिम्मेदारियों को पूरी तरह निभा सकते हैं।

दिव्य का छोटा भाई: साथ में मिलकर काम करना

दिव्य के छोटे भाई, 7 वर्षीय राजकुमार जोशी, भी अपने भाई के साथ मोमोज बेचने में मदद करता है। राजकुमार, जो अपनी उम्र के अनुसार खेलकूद में अधिक रुचि रखता है, अपने भाई का भरपूर सहयोग करता है। दुकान बंद करने के बाद, वह भाई के साथ ठेले को गंतव्य तक पहुंचाने और बर्तन धोने का काम करता है। दोनों भाई मिलकर अपने परिवार की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं।

स्वादिष्ट मोमोज: दिव्य की सफलता की कुंजी

दिव्य के मोमोज ग्राहकों के बीच काफी लोकप्रिय हैं। उनके मोमोज इतने स्वादिष्ट होते हैं कि ग्राहक दिव्य के ठेले का खुलने का इंतजार करते हैं। दिव्य के चाचा और चाची दिनभर मोमोज बनाने के लिए सामग्री तैयार करते हैं और शाम को दिव्य उन मोमोज को बेचने आता है। दिव्य बताता है कि वह प्रतिदिन लगभग 800 से लेकर 1400 रुपये तक की बिक्री कर लेता है, जो उसके परिवार के लिए एक महत्वपूर्ण आय का स्रोत है। उनके स्वादिष्ट मोमोज के कारण ग्राहकों का विश्वास बढ़ा है और दुकान की बिक्री में लगातार वृद्धि हो रही है।

दीवारों को लांघते दिव्य के सपने

दिव्य के लिए मोमोज बेचना सिर्फ एक नौकरी नहीं, बल्कि एक सपना है। वह अपने परिवार की स्थिति को सुधारने और एक बेहतर जीवन जीने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है। दिव्य की कहानी सिर्फ संघर्ष और मेहनत की मिसाल नहीं है, बल्कि यह एक प्रेरणा भी है। वह हर दिन अपने सपनों की ओर एक कदम और बढ़ता जा रहा है, और हमें विश्वास है कि वह एक दिन अपने परिवार को वह जीवन दे सकेगा, जिसका वह हकदार है।

दिव्य कुमार जोशी की कहानी उन बच्चों के लिए एक प्रेरणा है, जो छोटी उम्र में ही अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए अपने परिवार के लिए संघर्ष करते हैं। दिव्य की मेहनत और संकल्प यह साबित करते हैं कि कठिनाई चाहे जितनी भी हो, अगर मेहनत और लगन सच्ची हो तो किसी भी समस्या का हल निकाला जा सकता है।

इस छोटे से लड़के ने यह साबित किया है कि उम्र और हालात किसी के सपनों को रोक नहीं सकते। दिव्य के संघर्ष की यह कहानी समाज में ऐसे बच्चों के लिए प्रेरणा बन सकती है, जो अपनी मुश्किलों से जूझ रहे हैं और जीवन में बेहतर बनने का सपना देखते हैं।

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