अश्व अक्षांस: यह लेख “मौसम रोचक 1” में “अश्व अक्षांस” पर आधारित है, जो मौसम विज्ञान से जुड़ी एक ऐतिहासिक घटना और उसकी वैज्ञानिक व्याख्या को प्रस्तुत करता है। लेख में 17वीं शताब्दी के दौरान घोड़े के व्यापार, समुद्री मार्गों, और हवा के पैटर्नों के प्रभाव की चर्चा की गई है।

अश्व अक्षांस और इसका मौसम विज्ञान में महत्व
17वीं शताब्दी में जब इंजिन का आविष्कार नहीं हुआ था, तो यात्रा और परिवहन के लिए जानवरों का उपयोग किया जाता था, जिसमें घोड़े, ऊंट, हाथी, और खच्चर प्रमुख थे। उस समय, राजाओं और सम्राटों की ताकत को उनके सैन्य घुड़साल की संख्या और गुणवत्ता से मापा जाता था। ऐसे में, घोड़ों का व्यापार देश की अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता था, खासकर भारत में जहां अरबी नस्ल के घोड़े ईरान और इराक से आयात होते थे।
घोड़े का समुद्री परिवहन
घोड़ों को दूर देशों तक पहुंचाने के लिए विशाल नौकाओं का इस्तेमाल किया जाता था, जिनमें 40-50 घोड़े, व्यापारी और नाविकों के दल होते थे। इन नावों पर बड़े-बड़े पाल लगे होते थे, जो समुद्र की हवाओं का उपयोग कर गति पकड़ते थे। हालांकि, इन नौकाओं की गति समुद्र की लहरों की गति के समान होती थी, जिससे यात्रा में महीनों का समय लग जाता था।
अश्व अक्षांस का परिभाषा और प्रभाव
पृथ्वी पर खींची गई काल्पनिक रेखाओं में, भूमध्य रेखा के पास का क्षेत्र सबसे गर्म होता है। यहां की हवाएं गर्म होकर ऊपरी वायुमंडल की ओर उठती हैं और एक उच्च वायुदाब क्षेत्र बनाती हैं। इसी कारण, समुद्र के 30-35° अक्षांशों के पास समुद्री हवाएं धीरे-धीरे पश्चिम से पूर्व की दिशा में बहती हैं। इस क्षेत्र को “हॉर्स लैटिट्यूड” या “अश्व अक्षांस” कहा जाता है, क्योंकि यहां की शांत वायुमंडलीय स्थितियां अश्व व्यापारियों के लिए समस्याएं उत्पन्न करती थीं।
क्यों “अश्व अक्षांस” को मनहूस पट्टी कहा जाता था?
यह क्षेत्र समुद्र में तेज़ जल तरंगों और भंवरों के कारण नावों के लिए अत्यधिक जोखिमपूर्ण था। स्वीडिश व्यापारियों ने इस क्षेत्र में अपनी यात्रा के दौरान इन समस्याओं का सामना किया, और अंततः उन्हें घोड़ों को पानी में फेंकने के बाद भी दुर्घटना का सामना करना पड़ा। इस कारण से इस क्षेत्र को “डेविल जोन” या “हॉर्स लैटिट्यूड” के नाम से जाना गया।
मौसम वैज्ञानिक ए एम भठ्ठ द्वारा लिखित :- मौसम रोचक 1